प्रेरणादायक कहानी


आप रायचंद्र

 अरे तुमने यह खरीद लिया, हमे दिखाया भी नहीं। तुमने पार्टी की, हमें बुलाया भी नहीं। हमने फोन किया, तुमने तो उठाया ही नहीं। इन सबका एक ही जवाब है 

कि भाई, अगली दफा तुम भी यही करने के लिए आजाद हो, क्योंकि ये उलाहने बहुत ही सतही मानसिकता से भरे हैं। पता नहीं क्यों, हम किसी की जिंदगी में खुद को इतना खास मान बैठते हैं, वो भी इस जमाने में जब बच्चे माता-पिता से स्पेस मांग रहे है पति पत्नी से स्पेस मांग रहा है, बीवी 'मी टाइम' के लिए सबसे लड़ रही है और हम हैं कि रायचंद बने बैठे हैं। हमें क्यों लगता है कि सामने वाले के जीवन में घटने वाली हर घटना में वह हमें साक्षी बनाए। कुछ पल उसके खुद के भी हो सकते हैं !या फिर कुछ ऐसे, जिनमें आपके होने की जरूरत ही न हो। ऐसेमें तानाकशी और नाराजगी बहुत ही छिछला व्यवहार है। चाहे आप कितने भी अच्छे इन्सान, रिश्तेदार या पड़ोसी हो,आपको यह समझना होगा कि आपका भी अपना दायरा है और सामने वाले को भी अपनी प्राथमिकता है। आप सबने यह घिसा-पिटा डायलॉग जरूर सुना और बोला होगा कि 'फलाना तो बस काम पड़ने पर ही हमें याद करता है' तो सबसे पहले आप यह समझ लें कि आप पर भगवान की असीम कृपा है,

जो आप किसी के काम आ सकें। मसीहा को ही लोग जरूरत पर याद करते हैं। वो तब गलत होगा' जब आपको मदद करने के वक्त उसने मुंह फेर लिया हो। पहले तो फोन ने ही लोगों के निजी वक्त पर डाका डाल रखा है । उस पर जब हम किसी को कॉल करें तो उम्मीद रखते हैं कि सामने वाला हमारी कॉल हर हाल में रिसीव करे, नही तो हमें गुस्सा आ जाता है। क्यों भाई ? क्या आपने कॉल करने से पहले उससे  इजाजत ली? क्या हमने उसके वक्त और मूड का ख्याल करके कॉल किया ? नहीं 

तो फिर नाराजगी कैसी? ताना मारने के बजाय आप माफी मांगे तो यह आपका बड़प्पन होगा । खुद को इस काबिल बनाए कि लोग आपके स्वभाव और प्यार से वशीभूत

होकर पास आएं, न कि आपकी नाराजगी और मजबूरी से । याद रखें कि मजबूरियां चाहे कितनी ही हों, कभी भी खत्म हो सकती हैं।  

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