रात ढल गयी

                              रात ढल गयी
रात ढल गयी, रिया की मम्मी जग गयी। हम भी खटपटाहट में जग गए, चारपाई से उठ गए। 
उन्होंने हमे बतलाया, कुछ हमारे ऊपर से आया, शरीर कंपायमान हो गया, मैं तो डर गया, बोली कुछ तो जरूर है। मैंने कहा क्या हुजूर है। रिया बोली छछुंदर, मैं अभी निकलता हूँ कचूमर, उठ कर मैंने पैड लगाया। 
२० मिनट बाद छछुंदर को फँसाया, वह चुचुहाने लगी, हमें डराने लगी, मैंने दरवाजा खोला और छछुंदर को उठाकर बोला, मैं जा रहा हूँ, छछुंदर को फेंक कर आ रहा हूँ। नींद सभी की खराब हो गयी, रिया की मम्मी जग गयी, रात ढल गयी। 

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