प्रेरणादायक कहानी
यह घर-घर की कहानी
सड़क पर चलते हुए कोई न कोई व्यक्ति किसी न किसी से लड़ते-झगड़ते मिल जाती हैं । सोशल मीडिया खोलें तो आक्रोश भरे संवाद और टिप्पणियां सुनने
को मिल जाती हैं । परिवार में छोटी-छोटी बातों पर पारिवारिक कलह हो जाती है । आज समाज की यह स्थिति दर्शा रही है कि लोगों के अंदर सहनशीलता और धैर्य की कमी हो रही है, जो गुस्से के रूप में सामने आ रही है । 'गैलप वर्ल्ड पोल' की रिपोर्ट समेत कई अध्ययन इस बात की पुष्टि भी कर रहे हैं कि पूरी दुनिया में पिछले कुछ दशकों में पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं में भी गुस्से की भावना बढ़ी है, जो कि चिंता का विषय है ।
आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के अनुसार गुस्सा एक क्षणिक पागलपन है, जो हमारे भीतर की असुरक्षा, अधीरता और अज्ञानता का परिणाम है । जब हम अपने ऊपर नियंत्रण खो देते है, तब गुस्सा आता है । यह एक ऐसा भाव है, जो न तो हमारी समस्याओं को सुलझाता है और न ही किसी रिश्ते को मजबूत करता है, बल्कि यह हमें और दूसरों को कष्ट ही देता है ।
असल में, गुस्सा तब आता है, जब चीजें हमारी अपेक्षा के अनुसार नहीं होती । इसका मूल कारण हमारी अपेक्षाएं और अधीरता है । जब हम यह समझ ाते हैं कि जीवन हमेशा हमारी शर्तों पर नहीं चलता तो गुस्सा स्वत: ही कम होने लगता है। गुस्सा अक्सर शक्ति का नहीं, बल्कि कमजोरी का प्रतीक होता है । जो व्यक्ति भीतर से मजबूत होता है, वह प्रतिक्रिया देने से पहले सोचता है, संयम रखता है और स्थिति को समझने की कोशिश करता है ।
ध्यान, प्राणायाम और आत्मनिरीक्षण जैसे साधनों से आप अपने गुस्से पर काबू पा सकती हैं । ध्यान दें, जब मन शांत होता है तो गुस्से के लिए कोई जगह नहीं बचती । श्री श्री रविशंकर कहते हैं, "गुस्सा करना वैसे ही है, जैसे किसी और को सजा देने के लिए खुद जहर पीना ।"
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