प्रेरणादायक कहानी
बच्चा और मोबाइल
मुन्ना बहुत ऊंची आवाज में रो रहा था और आवाज धीरे-धीरे तेज होती जा रही थी। श्रीमती जी भागती हुई रसोई से आई और बोली, "क्या हुआ, यह इतना
क्यों रो रहा है ? आप चुप क्यों नहीं करवा रहे इसे? दो मिनट के लिए भी मुन्ने को संभाल नहीं सकते हो क्या? शांति से रोटी भी नहीं बना सकती।"
श्रीमान जी बोले, "मैंने क्या किया ? शांति से बैठा टीवी देख रहा था । अचानक मेरे हाथों से मेरा मोबाइल छीनने लगा। मैंने हटाया तो रोने लगा । अब टीवी के साथ-साथ मोबाइल भी दे दूं क्या इसे ? आंखें खराब करवानी है क्या बच्चे की ? " मम्मी-पापा की बहस देख मुन्ना खुद ही चुप हो चुका था और दोनों को ध्यान से देख
रहा था।
श्रीमती जी बोली, "तो क्या, थोड़ी देर के लिए दे देते। रूला दिया बेचारे को।" श्रीमान जी बोले, "टीवी देख तो रहा है। अगर इसे अभी से मोबाइल पकड़ा। दिया तो लत लग जाएगी। वैसे भी बिना मोबाइल के अब मुन्ना कुछ नही करता। खाना खिलौना है तो मोबाइल चाहिए, कपड़े बदलने हैं तो मोबाइल चाहिए, कोई काम करवाना है तो मोबाइल चाहिए, रोते-रोते चुप करवाना है तो मोबाइल चाहिए। अब तो बिना बात के ही रोने लग जाता है।" बच्चा है, इसे क्या पता! जो देखेगा, वही करेगा। सारा दिन तो आप मोबाइल में लगे रहते हो। कभी मुन्ने के साथ भी समय बिताया करो?"
श्रीमान जी बोले, "मुझे क्या कह रही हो। खुद भी तो तुम मोबाइल या टीवी ही देखती रहती हो। मुन्ना क्या केवल मुझसे ही सीख रहा है, तुमसे नहीं?"
श्रीमती जी बोली, "हां-हां, घर के काम तो हवा में ही हो जाते हैं।" इसी तरह श्रीमती जी रसोई में खाना बनाते हुए और श्रीमान जी सोफे पर बैठे हुए एक- दूसरे पर तीखे शब्दों के बाण चलाते रहे। मुन्ना अपने खिलौनों के बीच में बैठा उन्हें देख रहा था, मानो उसने कई दिनों के बाद उन्हें इतनी बातें करते सुना
हो। थोड़ी देर बाद जब सब दलीलें खत्म हुई तो दोनों मुन्नें को साथ लेकर खाना खाने बैठ गए।
आज माहौल में शांति का आलम था, अन्य दिनों के शोरगुल से ज्यादा सन्नाटा। न टीवी चल रहा था, न मोबाइल। आज की सुबह बाकी दिनों से अलग थी, बरसों की नींद पूरी हुई थी जैसे। दिमाग और आंखों का तनाव भी कुछ कम था। सुबह की शुरूआत भी मोबाइल के साथ नहीं, मुन्ने की मुस्कुराहट के साथ हुई थी। मोबाइल और
टीवी से दूर दोनों बात किए बगैर सारा काम किए जा रहे थे। नाश्ता करने के बाद श्रीमान जी उठे और दूसरे कमरे में, जहां उन्होंने अपना दफ्तर बनाया था, चले गए।
मुन्ना नहाने और खाना खाने के बाद सो गया । श्रीमान जी थोड़ी देर बाद दफ्तर से बाहर निकले और बोले, "अच्छा सुनो, मैं माफी मांगता हूं । तमने जो कहा सही था, पर इसका मतलब यह नहीं कि मैं गलत हूं । हम दोनों का हाल ऐसा ही है । सारे दिन हमारे हाथ में मोबाइल होता है, जिसे देख मुन्ने को लगता है कि मोबाइल से ज्यादा जरूरी चीज कोई और है ही नहीं ।" श्रीमती जी जो बहुत देर से अपने पति की बाते सुन रही थी, बोल उठी, "आजकल पढ़ाई-लिखाई आनलाइन हो गई है,
ऐसे में मुन्ने को यह भी तो आना चाहिए् ।"
श्रीमान जी बोले, "मैं यह नहीं कह रहा कि मुन्ने को मोबाइल से दूर कर दो, लेकिन हर चीज के लिए मोबाइल थमा देना गलत है । हमें मुन्ने के लिए नियम बनाने पड़ेंगे
इसके साथ ही अपने लिए भी कुछ नियम बनाने पड़ेगे । मुन्ने को यह समझाना है कि मोबाइल और टीवी दुनिया नहीं है, बल्कि दुनिया का एक हिस्सा है और सबसे महत्वपूर्ण है हमारा परीवार, न कि हमारे साथ जु़ड़ा यह यंत्र ।"
बात तो सही कह रहे हैं आप । हम आज से ही इस दिशा की और काम करेंके", श्रीमती जी बोली । मुन्ना भी अब सो कर उठ गया था ।
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