असंयम ही डुबो देता है एक जिज्ञासु व्यक्ति की मुलाकात एक ज्ञानी व्यक्ति से हुई। उसने ज्ञानी से पूछा,"जब सभी इंसानों की बनावट एक जैसी है, तो फिर उनमें से कुछ लोग पतन के गर्त में गिरकर क्यों डूब जाते हैं ?" ज्ञानी ने जिज्ञासु व्यक्ति को दूसरे दिन तालाब के किनारे आने के लिए कहा। तय किए गए समय पर दोनों तालाब पहुंचे। ज्ञानी के पास दो कमंडल थे। उनमें से एक कमंडल बिल्कुल ठीक था और दऊसरे के तले में छेद था। उसने दोनों कमंडलों को उस जिज्ञासु व्यक्ति को दिखाया। ज्ञानी व्यक्ति ने तले वाले कमंडल को पानी में फेंक दिया। वह तैरता रहा। इसके बाद उसने बिना तले वाले कमंडल को पानी में फेंक दिया। देखते ही देखते उसमें पानी भर गया और वह डूब गया। ज्ञानी ने जिज्ञासु से प्रश्न किया कि क्या तुम बता सकते हो कि दोनों कमंडलों की भिन्न भिन्न परिणति का क्या कारण है? जिज्ञासु ने कहा कि जिसके तल में छेद था, वह डूब गया और जिसका तल मजबूत था,वह तैरता रहा। ज्ञानी ने कहा कि ठीक इसी तरह इंसानों में असंयम के दोष होते हैं। कहने का आशय यह है कि अपने व्यक्तिगत दुर्गुणों से ही मनुष्य संसार की दुष्प्रवृत्तियां...
गतिहीन देह के भार का नहीं साड़ी की परिधि के घेर का नहीं विधि के विधान का भी नहीं जीवन-मरण वितरण। बातचीत वाले चबूतरे का मिट्टी के बर्तन का चने के साग का रोटी की भाप का जीवन-मरण वितरण। फूलों का नहीं कलियों का नहीं कांटो का भी नहीं जीवन-मरण वितरण। सूखी पत्तियों का बरसी के खेत का जामुन के पेड़ का जीवन-मरण वितरण। खुशी का नहीं हंसी का नहीं गम का भी नहीं जीवन-मरण वितरण। सूखे किस्सों का मनगढ़त कहानियों का प्रीत में लीन कविताओं का जीवन-मरण वितरण। तेरा नहीं मेरा नहीं इसका नहीं उसका नहीं हरी घास का भी नहीं जीवन-मरण वितरण। आत्मा का जीवात्मा का प्रेतात्मा का जीवन-मरण वितरण।
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