सत्य की शीतलता

 

सत्य की शीतलता

जय और विजय, दोनों मित्र टहलते हुए बातचीत कर रहे थे कि आदमी के दिमाग से बेहतर कोई मशीन नहीं है। आदमी ने ही कंप्यूटर जैसी मशीन का निर्माण किया है। “हां विजय, तुम सही कह रहे हो”, मित्र जय ने कहा। “लेकिन जय, एक बात आज भी मैं समझ नहीं पाता हूं कि आदमी का दिमाग आज इंश्योरेंस के पैसे लेने के लिए कितने ही झूठ के हथकंडे अपनाता है। कभी तो अपने ही घर में दुर्घटना को अंजाम दे देता है, फिर सगे-संबधियों को भ्रमित करने के ले अनेक पाखंड भी करता है, यानी वह दिखावा तो करता है, लेकिन उसे भगवान का भी भय नहीं होता है”, विजय ने कहा। जय तभी हां में हां मिलाकर बोला, “सही कह रहे हो मित्र, वही दिमाग विस्फोटक सामग्री को भी बनाता है, लेकिन सत्य की जोत तो हर युग में जलती रहती है। वह एक ही होती है, लेकिन झूठ की चालें बदलती रहती हैं और वही चालें हर समय में परिवर्तन भी पैदा करती हैं। राम और रावण आज भी हर दिमाग में जिंदा हैं, लेकिन किसकी श्रध्दा भक्ति कितनी निशछल है, इसके प्रमाण भी हमें यदा-कदा मिलने ही रहते हैं। दुनिया इन दोनों रंगो यानी अच्छाई और बुराई ही चलती है। ईश्वर में विश्वास हमें जीवन के अर्थ को समझाता है।

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