भरोसा
भरोसा
भाई् की शादी की कोई जल्दी नहीं है, लो उसकी कमाई के मजे अभी कुछ साल, बाद में कुछ हाथ नही लगेगा तम्हारे।
बीवी तो आते ही कमाई पर अपना ही हक समझेगी," यह बात कानों पर एक रिकॉर्डकी तरह गूंज रही थी बार-बार
पिछले तीन घंटे से सोने की कोशिश ही तो कर रहा था रवि। पर आज नींद तो आंखों के नजदीक आने का नाम ही नही ले रही थी। करवट बदलते-बदलते रात के दो बज चकेु थे। बहुत खुश होकर वह ऑफिस से जल्दी आया था कि मायके आई
बहन को कुछ खरीदारी करवाएगा।
...कितना मन था उसका राजस्थानी थाली खाने का, ऐसा ही मन बनाकर ही वह ऑफिस से निकला था पर वह बात जो
बहुत ही आसानी से दीदी ने मां को कह दी, सुनकर उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। हर बार मन को समझाने की नाकाम कोशिश की रवि ने। "नही! दीदी मेरे बारे में कभी ऐसा नहीं सोच सकती, पर जो बात उसने खुद सुनी हो उसे कैसे नकार दे। दीदी नहीं चाहती कि मेरी शादी हो, उन्हें डर है कि शादी के बाद मैं बदल जाऊंगा। वह जो अभी आई भी नहीं है आकर मुझे बदल देगी। "मां! एक बार भी आपने कुछत तो भरोसा किया होता आपने, अपने खून
पर, अपनी परवरिश पर। जब हाथ की सभी उंगुलियां एक-सी नहीं होती, तो हर इंसान एक जैसा कैसे हो सकता है मां..।"बोलकर रवि फूट-फूटकर रोने लगा...।
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