प्रेरणादायक कहानी
थाल कविता ब्याह कर अपने नए घर आई। गृह प्रवेश की रस्म होने के बाद थालेड़ी का नेग होना बाकी था। बुआ सास ने कविता को समझाया, "इसमें सात थालियों को एक-एक करके उठाना होता है और थालियों को उठाते समय आवाज नहीं होनी चाहिए। हर थाली घर के सदस्यों के रिश्ते की परिचायक मानी जाती है, इसलिए तुम ध्यान से और आराम से थालियां उठाना।" भारी भरकम थाल और दुबली-पतली कविता। ऊपर से शादी का लहंगा भी इतना भारी कि झुककर थालियां उठाना और उनको शांति से पकड़कर अगला थाल उठाना कविता के लिए मुश्किल हो रहा था। पांचवे थाल तक तो फिर भी थोड़ा सही था, पर छठा थाल थोड़ा बजा और सातवां पूरा बजा। कविता पर छींटाकशी होने लगी। "अपशगुन हो गया" कहकर सब फुसफुसाने लगे। ऐसी बाते सुनकर कविता रूआंसी हो गयी। तभी कविता की सासू मां ने कहा, "घबराओ नहीं कविता तुमसे कुछ गलत नहीं हुआ। अगर ये थाल रिश्तों में शांति का प्रतीक है तो जरूरी नहीं कि रिश्तों में शांति बचाए रखने के लिए हमेशा चुप ही रहा जाए। कभी-कभी ये थाल बजने भी जरूरी है। ये आवाज करते हुए थाल इस बात के साक्षी है कि अगर कभी किसी ने कुछ गलत कहा या गलत किया तो क...