संदेश

विधवा

विधवा  आज सवेरे सात बजे किसी ने बड़ी तेजी से दो बार डोर बेल बजाई। दरवाजा खोला तो देखा, हमारे अपार्टमेंट में रहने वाली मेहरा दरवाजे पर खड़ी थी। मिसेज मेहरा ने दरवाजा खुलते ही मुझसे कहा, "सॉरी, मैंने आपको सवेरे-सवेरे डिस्टर्ब किया। आप प्लीज अपनी काम वाली को हमारे यहां भेज दीजिएगा।"  "आपके यहां तो सरोज काम करती है?"  "सरोज के पति की पिछले महीने रोड एक्सीडेंट में डेथ हो गई। इसलिए मैंने उसे काम से हटा दिया।" "लेकिन क्यों? सरोज का काम तो बहुत अच्छा है।" मिसेज मेहरा ने हामी भरते हुए कहा, "हां, उसका काम अच्छा है। मैंने जब सरोज से कहा कि मैं अब तुमको काम पर नहीं रख सकती तो वह रोने लगी और कहने लगी, मेरे छोटे-छोटे चार बच्चे है। मझे पैसों की जरूरत है, मुझे काम से मत हटाइए।" इतना कहकर मिसेज मेहरा थोड़ा रूकीं, फिर कहने लगी, "मैंने सरोज को स्पष्ट रूप से कह दिया कि मैं तुम्हारी मजबूरी समझती हूं, लेकिन तुम जैसी विधवा औरत का सवेरे-सवेरे चेहरा देखकर मैं अपना सारा दिन तो खराब नहीं कर सकती।" मिसेज मेहरा ने जिस घमंड से यह बात कही, उसे देख मुझे ऐसा ...

हिम्मत

हिम्मत  पसीने में भीगी, थके कदमों से दिव्या अपनी मित्र नीता के साथ जिम करके बाहर आ रही थी। बैकयार्ड के दूसरे छोर पर भूतिया फिल्म के कैरेक्टर जैसे उस व्यक्ति को देख ठिठक कर बोली, "यार, इधर से नहीं चलते हैं। उस शॉपिंग माल का गार्ड बड़ी गंदी नजरों से घूरता है।"  "मीन्स दोहरा काम करता है। चल इधर से ही।" कहकर नीता व्यंग्य से मुस्कुरा दी। अंदर बैठे डर ने थके शरीर में सोई हुई स्फूर्ति को जगाया तो दिव्या ने उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा, "यार, उसने कुछ गंदे कमेंट कर दिए तो अच्छा नहीं लगेगा। हम ही रास्ता बदल लेते हैं। तू आज ही आई है, तुझे पता नहीं है कि कैसे खा जाने वाली आंखों से देखता है वह।"  "अरे, महीनें से जिमिंग करके भी डरती है उस मरियल से। चल , मैं हूं न।" नीता उसे पकड़कर हिम्मत बंधाती हुई आगे बढ़ी। सामने से उन दोनों को आता देख स्टूल पर बैठा गार्ड सतर्क हो गया। मुंह में बीड़ी दबाए वह एक टक उन्हें देखे जा रहा था। चंद मिनट बाद उसने माचिस की तीली जलाई और बीड़ी सुलगा दी। उन दोनों के पास आते ही बेहयायी से मुस्कराते हुए गार्ड की नजरे चौकन्नी हो उन दोनों ...

शाम की ख्वाहिशें

शाम की ख्वाहिशें  शाम की ख्वाहिशों को कभी तो चैन आए,  कि भटकते मुसाफिर को  दहलीज कोई बुलाए।। बातों की जिद हो ऐसी कि खामोशी भी मुस्कुराए हवाएं भीगे दुपट्टे को  परों पर अपने उड़ाए।। नजदीकियों की कशिश में  दूरियां खुद को ही मिटाएं खोई चाहतों की संदूक से  एक सपना कभी चुराएं।। इंतजार के लम्हात न हों यूं कदमों की आहटें छाएं जो छूट गईं वो आदतें कभी मिल कर हमें रूलाएं।। पत्थर हुई नजरों को  कभी नजारें तो आ सहलाएं और मुहब्बत अलविदा   कह कर मासूमियत की उम्र लौटाए।। घर लौटते परिंदे कभी तो  वो क्षितिज हमें दिखाएं  जहां जगमगाते सितारों को कोई दुआ न तोड़ पाए।। धड़कनों में उठती बेचैनियां  आंखों को न सताएं हकीकत के आसमां तले कभी तो मुलाकातें हमें     भरमाएं।। ये धुंधली लकीरें कभी तो  एक शाम ऐसी सजाएं  कि सुकूं भरे लम्हों में  सिरकतें यादों की न हो पाएं।।

पिता और बेटी की व्यथा

पिता और बेटी की व्यथा थककर जब बैठी तो लगा एक  पल ठहर जाऊं, पलट के जिंदगी के उसी दौर में जाऊं।।  जहां मां-बाप के साए में न फिकर परेशानी, गोद में सर रखकर जिंदगी का सुकून पाऊं।।  वह दौर कहां से लाऊं, फिर बचपन कहां से पाऊ।।  यदि वह प्यार मुझे मिल जाए,  बच्चों संग समय बिताऊ।। 

सत्य की शीतलता

  सत्य की शीतलता जय और विजय, दोनों मित्र ट हलते हुए बातचीत कर रहे थे कि आदमी के दिमाग से बेहतर कोई मशीन नहीं है। आदमी ने ही कंप्यूटर जैसी मशीन का निर्माण किया है। “हां विजय, तुम सही कह रहे हो”, मित्र जय ने कहा। “लेकिन जय, एक बात आज भी मैं समझ नहीं पाता हूं कि आदमी का दिमाग आज इंश्योरेंस के पैसे लेने के लिए कितने ही झूठ के हथकंडे अपनाता है। कभी तो अपने ही घर में दुर्घटना को अंजाम दे देता है, फिर सगे-संबधियों को भ्रमित करने के ले अनेक पाखंड भी करता है, यानी वह दिखावा तो करता है, लेकिन उसे भगवान का भी भय नहीं होता है”, विजय ने कहा। जय तभी हां में हां मिलाकर बोला, “सही कह रहे हो मित्र, वही दिमाग विस्फोटक सामग्री को भी बनाता है, लेकिन सत्य की जोत तो हर युग में जलती रहती है। वह एक ही होती है, लेकिन झूठ की चालें बदलती रहती हैं और वही चालें हर समय में परिवर्तन भी पैदा करती हैं। राम और रावण आज भी हर दिमाग में जिंदा हैं, लेकिन किसकी श्रध्दा भक्ति कितनी निशछल है, इसके प्रमाण भी हमें यदा-कदा मिलने ही रहते हैं। दुनिया इन दोनों रंगो यानी अच्छाई और बुराई ही चलती है। ईश्वर में विश्वास हमें जीवन के...

जीवन सार

        जीवन सार कर से कमल कमल से कर, कर कंगन से शोभा कर की।।  वर से वधू वधू से वर, वर वधू से है शोभा घर की।।  नर से नारि नारि से नर, नर नारी से बन्धन तन की।।  जन से जनक जनक से जन, जन जीवन से मंगल जन की।। 

मंगलसूत्र

मंगलसूत्र  पूजा सुबह जल्दी उठ गई। रात को भी नींद नहीं आई थी। कमरे से बाहर आकर वह बालकनी में कुर्सी पर बैठ गई और सोचने लगी , आज फिर नौकरी के लिए इंटरव्यू  देने जाना है। वह फिर उलझ गई अतीत के पन्नों में। सात महीने पहले ही उसके पति हरीश का हार्ट फेल हो गया था। बड़ी बेटी पूर्वी आठ साल की, छोटा बेटा हर्ष पांच साल का और घर में सासू मां कोई भी संभालने के लिए नहीं था। पूजा पढ़ी-लिखी थी। उसमें नौकरी करने की योग्यता भी थी। इससे पहले वह तीन बार इंटरव्यू देने जा चुकी, हालांकि निराशा ही मिली थी। पहले जहां गई उन्होंने पूछा, " आप सर्विस क्यों करना चाहती हैं?" दुनिया भर की बातों से बेखबर अपनी सारी बात बताई। इंटरव्यू लेने वाले सज्जन ने कहा, " अभी आप इंतजार करो, दो केंडिडेट और हैं, मैं फिर आपसे बात करता हूं।" फिर बोले, " पास में ही रेस्टोरेंट हैं, वहाँ बैठ कर बात करते हैं और साथ में चाय भी हो जाए।" पूजा को कुछ ठीक नहीं लगा, वह बहाना बनाकर घर आ गई। दूसरी जगह भी पूजा ने सरलता के साथ सारी बात की। इंटरव्यू लेने वाले ने कहा, " अभी आपकी उम्र ही क्या है। आपको देखकर नहीं लगता ...

रावण की कार्यशैली

    रावण की कार्यशैली देव दनुज दानव दल दहले,  दिल दहलाया है।।  तिथि दशमी को दशरथ के लाल ने ,  दशभाल को गिराया है।।  देव दानव और दिग्गज उससे डरते थे,  घर में उसके अग्नि वायु पानी भरते थे।।  चली चाल चतुरंग,  चपल चपला चमकाया है।।  तिथि दशमी को दशरथ के लाल ने,  दशभाल को गिराया है।। 

गाँव की चौपाल

      गाँव की चौपाल गाँव बसै वट बरगद पै,  तब छाँव रहत तन खींचत सो।।  बैठि के द्वारे पे बातें करत,  सब लोगन को मन मोहत सो।।  इत की उत की अपने घर की,  यहि बातें सबै को रिझावत हो सो।।  अब कौन कहां केहि कारन के,  तेहिं कुशलक्षेम नहि पूछत सो।। 

यादें

यादें  कुछ यादें मन के झरोखे पर सिमटकर रह जाती है        भूले-बिसरे वे कभी-कभी हमें          बहुत कुछ याद दिलाती हैं वो अमिट यादें, जो हमारी धरोहर हैं      हमारे मन में बस जाती हैं            पर कुछ यादें       दिल से नहीं निकल पाती हैं           भूलना ही जीवन है       और वर्तमान बस हमारा है        अतीत को याद करना,      विडंबना और भुलावा है       अतीत बीत जाता है,      हर क्षण समय के साथ        आगे बढ़ जाता है       पर ये यादें परछाइयां       बन साथ निभाती हैं           मन-बेमन    उभर-उभर कर आती हैं         दुखद यादों को       अतीत के सागर में          डुबो कर ही        हम जी सकते है...